नवंबर 30, 2013

याद



रात फिर आयी थी याद तेरी 
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही 
हिचकियों की आवाज़ें 
मेरे कानों में गूँजती रही   
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद 
रात भर सिसकती रही, 

अरसा गुज़र गया है
उस वक़्त को बीते हुए,
पर आज भी तेरी याद 
मेरा पीछा नहीं छोड़ती,   

जब भीड़ में होता हूँ, 
तो ये तनहा कर देती है, 
जब तनहा हूँ तो 
गुज़रे लम्हों का एक 
मज़मा सा लगा देती है,

और फिर मुझे उसी अतल
गहराई में धकेल देती है 
जहाँ अतीत और वर्तमान
के बीच सब धुंधला सा जाता है,

और मैं गुमराह राही सा अनजान 
ये सोच ही नहीं पाता कि 
कौन सा रास्ता अतीत के 
काले अंधेरों में जाकर गुम हो जाता है
और कौन सा वर्तमान के उजियारे में,  

तंग आ गया हूँ अब मैं  
इसकी पिघला देने वाली 
मनुहारों से बचने के लिए, 
अपने ज़ेहन कि कोठरी के 
दरवाज़े मज़बूती से बंद कर दिए,

रात फिर आयी थी याद तेरी 
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही 
हिचकियों की आवाज़ें 
मेरे कानों में गूँजती रही   
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद 
रात भर सिसकती रही, 

© इमरान अंसारी


20 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत रचना......!!
    बीते दिनों की यादें जेहन में घर बना लेते हैं ....

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  2. मर्मस्पर्शी...यादों का सिलसिला नज़्म बन के उतरा...सुंदर अभिव्यक्ति !!

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  3. जो भीड़ में तनहा क्र दे और तनहाई में मजमा लगा दे वही तो इश्क का जादू है...कोई कोई ही इसकी कद्र कर पाता है

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  4. यह तो कुछ इस गजल की तरह बात हो गयी शायद सुनी हो आपने ..:-) मेरी पसंदीदा गज़लों में से एक है
    शाम ढले इस सुने घर में, मेला लगता है
    हम भी पागल हो जाएंगे ऐसा लगता है
    दीवारों से मिलकर रोना .....

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  5. ये मुई यादें ..न खुद चैन से जीती है और न ही जीने देती है..बस एक लम्बी आहहहह ....

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  6. बहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  7. यादें है ..जाती नहीं...अगर बंधन स्नेह का हो. बहुत बढ़िया रचना इमरान भाई. बिलकुल जज़्बात में डूबी हुई.

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  8. जब उनकी याद है तो तन्हाई कैसी ... यादें सहारा हैं जीवन का ... बंधन है सांसों का ...
    लाजवाब रचना ...

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  9. जाने अनजाने, वे भूलें , कुछ पछताए, कुछ रोये थे !
    हमने ही ,नज़रें फेरीं थीं , उसने तो, वफादारी की थी !

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  10. उत्तर
    1. आपके ब्लॉग पर आने अपनी कीमती टिप्पणी से हौसलाअफ़ज़ाई करने का तहेदिल से शुक्रिया |

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...