जज़्बात...दिल से दिल तक
एक दरिया है ये जज़्बातों का जिसमे लफ़्ज़ों की किश्तियाँ तैरती हैं........... जज़्बात मेरे.....तुम्हारे और हम सबके......एक ज़रिया जिससे जज़्बातों का ये सैलाब एक दिल से दूसरे दिल की दहलीज़ तक पहुँच जाए......लफ़्ज़ों की किश्ती पर सवार ......आओ डूब जाएँ जज़्बात के इस दरिया में.......
सितंबर 29, 2016
सितंबर 26, 2016
मई 08, 2015
दौर-ए-गर्दिश
लगता है सुलझाने में ही बीतेगी तमाम उम्र
उलझी है जिंदगी किसी सवालात की तरह,
ज़ाहिर करता है ऐसे पहचानता नहीं मुझे
मिलता है हर बार पहली मुलाक़ात की तरह,
बदले-बदले से उसके तेवर नज़र आते हैं,
वो भी बदल रहा है जैसे हालात की तरह,
कर सके तो कर वफ़ा मेरी वफ़ा की बदले
नहीं चाहिए मुहब्बत मुझे खैरात की तरह
क्यूँ दौर-ए-गर्दिश से घबरा न जाये दिल
गम बढ़े आते है किसी बारात की तरह,
© इमरान अंसारी
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जज्बातों में डूबी शायरी
दिसंबर 09, 2014
रात
दोस्तों,
आप सबको सलाम अर्ज़ है । गुस्ताखी की माफ़ी के साथ अर्ज़ है कि लाख कोशिशों के बावजूद वक़्त नहीं निकल पा रहा हूँ ताकि आप सब दोस्तों के ब्लॉग तक पहुँच सकूँ । कभी कुछ लिखने का मौका मिलता है तो बस उसे पोस्ट कर देता हूँ । इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से और मोबाइल पर वक़्त न मिल पाने की वजह से ऐसा हो रहा है । कोशिश रहेगी की जल्द-अज़-जल्द इस मुश्किल का कोई हल निकाल सकूँ । इस उम्मीद में कि आप सबको स्नेह और प्यार बना रहे । एक ताज़ा नज़्म पेश-ए-खिदमत है , इस उम्मीद में कि आपको पसंद आएगी :-
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आप सबको सलाम अर्ज़ है । गुस्ताखी की माफ़ी के साथ अर्ज़ है कि लाख कोशिशों के बावजूद वक़्त नहीं निकल पा रहा हूँ ताकि आप सब दोस्तों के ब्लॉग तक पहुँच सकूँ । कभी कुछ लिखने का मौका मिलता है तो बस उसे पोस्ट कर देता हूँ । इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से और मोबाइल पर वक़्त न मिल पाने की वजह से ऐसा हो रहा है । कोशिश रहेगी की जल्द-अज़-जल्द इस मुश्किल का कोई हल निकाल सकूँ । इस उम्मीद में कि आप सबको स्नेह और प्यार बना रहे । एक ताज़ा नज़्म पेश-ए-खिदमत है , इस उम्मीद में कि आपको पसंद आएगी :-
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हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,
रात भर आवारा हवा
शराबी की तरह बहकती है,
मदहोश करती खुशबू से
रात की रानी महकती है,
दरिया पर हिचकोले लेता
पानी सितार बजाता है,
उसी धुन पर पायल बजाती
मस्त होकर चाँदनी थिरकती है,
नीले आसमां पर ज़री से टके
ये सितारे हीरों से चमकते हैं,
अपनी खुदी से रोशन जुगनू
यहाँ से वहाँ मारे-मारे फिरते है,
देखो ज़रा तुम भी कभी,अपनी
गफलत की नींद से जागकर,
ख्वाबों से सजी इन रातों में
कैसे ये जगत सारा झूमता है,
हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,
© इमरान अंसारी
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,
रात भर आवारा हवा
शराबी की तरह बहकती है,
मदहोश करती खुशबू से
रात की रानी महकती है,
दरिया पर हिचकोले लेता
पानी सितार बजाता है,
उसी धुन पर पायल बजाती
मस्त होकर चाँदनी थिरकती है,
नीले आसमां पर ज़री से टके
ये सितारे हीरों से चमकते हैं,
अपनी खुदी से रोशन जुगनू
यहाँ से वहाँ मारे-मारे फिरते है,
देखो ज़रा तुम भी कभी,अपनी
गफलत की नींद से जागकर,
ख्वाबों से सजी इन रातों में
कैसे ये जगत सारा झूमता है,
हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,
© इमरान अंसारी
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जज्बातों में डूबी शायरी
नवंबर 24, 2014
सवेरा
हर रोज़ सवेरा मेरी
दहलीज़ तक आता है
पंजों के बल खड़े होकर
नदीदे बच्चों की तरह
वो नन्हा सा सूरज
मेरी ऒर ताकता है,
दहलीज़ तक आता है
पंजों के बल खड़े होकर
नदीदे बच्चों की तरह
वो नन्हा सा सूरज
मेरी ऒर ताकता है,
किरणें गालों से मेरे
अठखेलियां करती हैं
दूर किसी शाख पर बैठी
कोई बुलबुल चहकती है,
धूप माँ के जैसे प्यार से
बालों में उँगलियाँ फेरती है
उम्मीदों से भरी अपनी
आस की झोली खोलती है
ज़िंदगी का एक और टुकड़ा
नए दिन का तोहफा देती है,
मेरे साथ-साथ ही जग सारा
अपनी नींद से जागता है
हर रोज़ सवेरा मेरी
दहलीज़ तक आता है,
© इमरान अंसारी
अठखेलियां करती हैं
दूर किसी शाख पर बैठी
कोई बुलबुल चहकती है,
धूप माँ के जैसे प्यार से
बालों में उँगलियाँ फेरती है
उम्मीदों से भरी अपनी
आस की झोली खोलती है
ज़िंदगी का एक और टुकड़ा
नए दिन का तोहफा देती है,
मेरे साथ-साथ ही जग सारा
अपनी नींद से जागता है
हर रोज़ सवेरा मेरी
दहलीज़ तक आता है,
© इमरान अंसारी
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