मार्च 30, 2011

शब्द....किसके हैं ये शब्द?


प्रिय ब्लॉगर साथियों,

पिछले दिनों और उससे पहले भी कई लोगों की टिप्पणियाँ और मेल मिली जिसका आशय ये था कि क्या इस ब्लॉग कि सारी पोस्ट आप स्वयं लिखते है ? शायद और पाठकों के मन में भी ये सवाल कभी न कभी उठता होगा......तो आज पेश है मेरी तरफ से आप सबको ये जवाब -

मैं एक साधारण इंसान हूँ....सिर्फ एक ज़र्रा.....कोई कवि, लेखक या कोई शायर बनने या अपने को समझने कि जुर्रत और हिमाकत मेरी नहीं है.....हाँ उर्दू अदब और हिंदी साहित्य से मुझे बहुत लगाव है, इसके आलावा मुझे आध्यात्मिकता से बहुत लगाव है खासकर सूफी दर्शन से......अपनी उम्र के हिसाब से शायद कुछ अधिक परिपक्व हो गया हूँ......जिंदगी में जो कुछ सुनता हूँ, पढता हूँ उसे बहुत करीब से महसूस करता हूँ बाकि जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया है......दिमाग कि बजाय दिल को ज़्यादा तरजीह देता हूँ.....इसलिए जो कुछ कहीं महसूस किया है वो आपसे बाँटने के लिए इस ब्लॉग कि शुरुआत कि और आज भी कभी फॉलोवर की संख्या या टिप्पणियों की गिनती पर कम ध्यान रहता है क्योंकि ये ब्लॉग मेरी अपनी आत्मसंतुष्टि का जरिया है......यहाँ जो गजले, नज्में, गीत, विचार, सूफियाना कलाम...  आप पढ़ते हैं वो सारे के सारे मैं खुद नहीं लिखता या मैंने नहीं लिखे, कुछ संकलन है,  कुछ मैंने खुद भी लिखे हैं......इसका हिसाब रखना ज़रूरी नहीं समझा कि क्या अपना था और क्या और किसी का क्योंकि मेरे लिए उसमे छिपे जज़्बात मायने रखते हैं, मैं उसमे खुद को महसूस करता हूँ...... जब मैं यहाँ कुछ प्रकाशित करता हूँ तो उसमे छिपे जज़्बात मेरे और सिर्फ मेरे होते हैं जिसे कभी तस्वीरों के माध्यम से तो कभी शब्दों के माध्यम से बाँट लेता हूँ........

मैं खुद कि तारीफ का भूखा नहीं हूँ.......क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरे ब्लॉग - कलाम का सिपाही और खलील जिब्रान पर जो मैं प्रकाशित करता हूँ आप में से नब्बे फीसदी लोग उसे कभी न पकड़ पाते जिसे अगर मैं अपने नाम से प्रकाशित करता , पर मेरा ऐसा इरादा नहीं, बल्कि मैं तो ये चाहता हूँ कि ये चीजें आप तक पहुंचे ताकि आप उन सबसे भी रूबरू हो सके जो कहीं अछूता रह जाता है.......यहाँ हर किसी को समर्पित करने के लिए ब्लॉग बना पाना सम्भव नहीं है इसलिए जज़्बात एक प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ कोई दायरा नहीं, कोई सीमा नहीं है, मेरा संकलन जो कई बरसों का है और बढता जाता है उसमे भी मैंने नामों को तरजीह कम दी है इसलिए कई का तो मुझे पता ही नहीं हैं, इतनी छोटी बातों पर मैंने ध्यान नहीं दिया कभी , उसके लिए माफ़ी का हक़दार हूँ |

आप सबसे गुज़ारिश है जिन्हें किसी पोस्ट कि खूबसूरती और उसमे उकेरे जज़्बात अपनी तरफ खींचते है उनका मैं तहेदिल से इस्तकबाल करता हूँ पर जो नामों में उलझे हैं और सिर्फ ये बताने या जताने कि तर्ज पर टिप्पणी छोड़ते हैं कि 'देखा हमने पहचान लिया न कि ये तुमने नहीं लिखा'........उनसे मैं यही कहूँगा हो सके तो इससे ऊपर उठें........यहाँ इस ब्लॉग पर अगर ग़ज़ल में शायर का तखल्लुस शेर में आता है तो वो ज़रूर आएगा......बाकी न मैंने कभी 'नाम' डाला था और न आगे 'नाम' डालूँगा चाहें वो मेरा ही क्यों न हो ........ये दहलीज़ कम से नामों से मुक्त रहेगी......लोगों से अनुरोध है कृपया व्यक्तिगत और अन्यथा न लें......शुक्रिया|
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अरे ....अरे ....नाराज़ न हों आपको खाली हाथ नहीं जाना पड़ेगा तो पेश है आज कि ये पोस्ट .........शब्दों पर अधिकार को लेकर........


शब्द....किसके हैं ये शब्द?
क्या तेरे, क्या मेरे ?
क्या कभी किसी के हुए हैं ?
ये शब्द.....

इस विराट में शब्द नहीं हैं,
है तो सिर्फ एक नाद 
जो अनहत गूँजता है, 
और उस नाद को 
वर्णित करने के लिए ही तो 
शब्दों के वस्त्र बनाते हैं हम,

फिर क्या फर्क है, कि किसी के 
वस्त्र उजले हैं, और किसी के स्याह
क्या संसार के शब्दकोश में
कोई भी ऐसा शब्द है,
जो उस अनकहे
को अभिव्यक्ति दे,

क्यों है शब्दों की इतनी अहमियत ?
क्या केवल शब्दों को 
क्रम देने से ही
शब्दों पर छाप पड़ जाती है ?
'सर्वाधिकार सुरक्षित' हो जाते हैं ?

कभी सोचा है तुमने की तुम 
शब्दों पर अपने अधिकार 
को सुरक्षित करते हो ....
क्या सच में तुम ऐसा कर सकते हो ?

क्या कभी कोई उस क्रम को थोड़ा
सा बिगाड़कर, थोड़ा इधर 
या थोड़ा सा उधर सरकाकर
तुम्हारे 'सर्वाधिकार' को
'असुरक्षित' नहीं कर देता है 
फिर कैसा अधिकार है ये ?

क्या कभी अनुमान किया है 
कि इन शब्दों के माध्यम 
से ही इस संसार में
प्रतिपल कितनी बकवास 
की जाती है ?
कितनो के खिलाफ ज़हर 
उगला जाता है?
कितने लोगों को लड़ाया 
जाता है ?

अरे जागो, 
शब्दों के पीछे मत भागो
ये तो सिर्फ एक जाल है,
शब्द अभिव्यक्ति का मात्र माध्यम हैं
और इन अधिकारों के चक्कर 
में तुम वो तो भूल ही जाते हो
जिसको कहने के लिए
इन शब्दों का सहारा लिया गया,

थोड़ा सा गहराई में जाओ.....
थोड़ा सा डूबो उस रस में 
जो शब्दों से परे है,
जैसे दिल की धडकन
बिना कहे कुछ कहती है,
जैसे साँसों की गरमी,
जैसे हाथों कि नरमी,
जैसे मतवाले नैनो की बोली
बिना बोले भी बोलती है, 
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अगर किसी के 'सर्वाधिकार सुरक्षित' में से कोई शब्द भटककर इधर आ निकला हो तो कृपया उसे खींच के यहाँ से ले जाकर सुरक्षित करें :-)



25 टिप्‍पणियां:

  1. आज आपका पोस्ट पढ़ने के बाद इस बात में कोई संशय नहीं रहा कि इमरान अंसारी नाम का यह सख्श एक बहुत ही बड़े ,अच्छे ,इमानदार और संवेदनशील ह्रदय का मालिक है !
    आपकी संवेदनाशीलता ने मेरा दिल जीत लिया !
    शुक्रिया इमरान भाई !

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  2. आपका कहा गया एक एक शब्द सही है लेखन दिल से होता है न की दिमाग से और लेखन के लिए आपको गहराई से खुद को समझना होता है ...आपका आभार

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  3. बेनामीमार्च 30, 2011

    @ ज्ञानचंद जी....ये आपकी ज़र्रानवाज़ी है वरना हम किस काबिल है....
    @ केवल राम जी आभार है आपका

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  4. bahut khoob.........
    shavg ye to madhyam hai...

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  5. इमरान जी, आपकी यह पोस्ट बहुत गहरे भाव लिये हुए है, शब्दों को केवल माध्यम मानकर हम उसके पीछे छिपे सत्य तक पहुँच सकें तभी हमारी साधना सफल होगी, एक-दो जगह वर्तनी की अशुद्धियाँ हैं वैसे तो उन्हें भी नजरंदाज करके पढ़ा जा सकता है पर शब्द ब्रह्म हैं न, टी वी टुट् चिड़िया की आवाज के लिये प्रयुक्त होता है, हिंदी के बड़े कवि ने शायद पन्त जी ने पहली बार किया था, सर्वाधिकार सुरक्षित नहीं किये सो मैंने भी लिख दिया....

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  6. बेनामीमार्च 31, 2011

    इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बेनामीमार्च 31, 2011

    @ अनीता जी आभार 'टी वी टुट' का मतलब बताने और अपनी राय देने का......इतना सारा काफी दिन बाद टाइप किया था इसलिए अशुद्धियाँ रह सकती हैं.....इस ओर ध्यान दिलाने का आभार....

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  8. बहुत गहन चिंतन ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  9. आपकी सोच और कविता दोनों ही बेजोड़ लगीं...
    नीरज

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  10. बहुत सुंदर ..... आपके व्यक्तित्व का यह पक्ष और आज की रचना ....आभार

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  11. इमरान जी
    जज़्बा होना चाहिये और वो आपमे है और उसके सभी कद्रदान हैं……………शब्दो की बहुत ही सुन्दर और गहन व्याख्या की है कुछ इससे मिलता सा ही मैने भी अभी लिखा था एक प्रयास ब्लोग पर ………निस्वार्थ्………शब्दो के माध्यम से ही……………शायद ऐसा ही कुछ कहने का प्रयास था।

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  12. बेनामीअप्रैल 01, 2011

    आप सभी लोगों का तहेदिल से शुक्रिया वक़्त देने और हौसला बढाने का....

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  13. इमरान जी ,
    शुक्रिया अपनी सोच को शब्द देने के लिए ..शब्द पर लिखी रचना बहुत सटीक है....

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  14. स्वयं को स्पष्ट कर दिया है ..अब पाठकों को सोचने दीजिए ...दरअसल ब्लॉग पर अक्सर लोग व्यक्तिगत लेखन ही ज्यादा पोस्ट करते हैं ...और यदि संकलन की गयी पोस्ट लगाते हैं तो उस पर यह लिख देते हैं कि यह किसकी है ... वरना लोग चोरी का आरोप भी लगा देते हैं ...

    शब्द पर रचना बहुत गहन भाव लिए हुए है ..अच्छी प्रस्तुति

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  15. बेनामीअप्रैल 03, 2011

    @ संगीता जी आभार आपका टिप्पणी के लिए.......शब्दों की चोरी कैसे हो सकती है जब शब्दों पर किसी का अधिकार ही नहीं बनता.....फिर भी किसी को ऐसा लगता है तो क्या किया जा सकता है |

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    उत्तर
    1. बहुत अच्छी बात कही है इमरान जी फिर भी जैसा कि संगीता आंटी ने कहा जिस भी शायर की गजल लें अगर वो आपकी नहीं है तो उन शायर का नाम भी दे दें। जज़्बात और मूल शब्दों को कोई चुरा नहीं सकता लेकिन फिर भी मेरी समझ से यह वर्गीकरण तो होना ही चाहिये कि कौन सी पोस्ट मूल रूप से आपने लिखी है और कौन सी आपने किसी और शायर की ली है।
      आशा है अन्यथा नहीं लेंगे।

      सादर

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    2. बेनामीजुलाई 25, 2012

      यशवंत जी.....शुक्रिया जैसा की मैंने पोस्ट में ही लिखा है की मेरा ये संकलन मेरे ब्लॉग लिखने से बहुत पहले का है और तब या अब भी मैंने नामों को तरजीह नहीं दी.....कई का वाकई मुझे पता नहीं है पता होता है तो मैं ज़रूर लिखता हूँ जैसे गुलज़ार साहब और अन्य कई....ग़ालिब साहब के लिए अलग से ब्लॉग बनाया है क्योंकि वो पहले शायर है जिन्हें मैंने पढ़ा और उनके नाम से पढ़ा.....दूसरे मेरी किसी पोस्ट में खुद मेरा नाम नहीं होता.....बाकी सब अपनी अपनी सोच है मैं किसी को मजबूर नहीं करता अगर आपको जज़्बात की अहमियत लगे तो आपका स्वागत है ।

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  16. इमरान ,हो सके तो अपनी हिम्मत भी बाँट दो जैसे जज्बात बाँटते हो..ब्लॉग जगत में सच कहने वालों की संख्या नगण्य ही है .आपकी टॉप -टेन लिस्ट में मैंने झलक देखा था ..आज मान गयी ..सलाम है आपको

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  17. aap ke harek shabd mae aapki schhai jhlkti hae.. aap ka kaam prshansniy hae...fir kahte hae na..."kuch to log kahege, logo kaa kaam hae kahna."....Keep up the good work..

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  18. इमरान साहब...

    आपकी बेबाकी और साफगोई की तारीफ किये बिना मुझसे रहा नहीं गया !

    पहले तो मैंने आपकी नज़्म ही पढ़ी,फिर टिप्पणी लिखते समय कुछ टिप्पणियाँ पढ़ीं और आपका ऊपर लिखा लेख भी..आपके शब्दों के चयन की तारीफ करना चाहूंगी जो आपने अपनी बात को बिना किसी की भावना को ठेस पहुंचाए लिखा है.....नज़्म की खूबसूरती उस से और भी बढ़ गई है...!!

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  19. अपनी बातो को आपने बहुत ही सहज ता से व्यक्त की
    है..अच्छा लगा आपकी मन की बाते जानकर :-)
    शब्द पर बहुत ही बेहतरीन और गहन चिंतन लिए है आपकी रचना...
    बेहतरीन.....

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  20. पूरी पोस्ट एक ईमानदार अभिव्यक्ति है और अपनी पसंद को अपना मानना बिल्कुल गलत नहीं . सच भी है - कहना था हमें , कह गए वो ...

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  21. बेनामीअगस्त 06, 2012

    बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी जज्बातों को समझने के लिए ।

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  22. शब्द ही शब्द को समझता हैं ...खूबसूरत अहसास ..

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  23. bhai Emran ji .......shabdo pr etani gahari sameeksha ....bilkul lajabab prastuti lagi ....sadar badhai ke sath abhar bhi

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...