अक्तूबर 08, 2012

परछाईं



तिनका तिनका जोड़ कर बनाया था जिसे 
इक पल में तुमने उस आशियाँ को आग लगाई,

दिया हर क़दम पर मुझे रुसवाइयों का तोहफा 
गुनाह था मेरा इतना कि तुमसे की आशनाई,

मुद्दतों बाद सीखा था मैंने फिर से मुस्कुराना 
पर तुम्हें तो मेरी ख़ुशी कभी रास ही न आई,

या मेरे खुदा ! क्या खूब है तेरी भी खुदाई
अगरचे इश्क है दुनिया में तो संग में जुदाई,  

बाँधा करते थे हम तुमसे उल्फत की उम्मीदें 
  पर कहाँ तुमने कभी रस्म-ए-मुहब्बत निभाई, 

भर सके जो मेरे इन गहरे ज़ख्मों को 
ढूंढ रहा हूँ मैं हर जगह वो मसीहाई,

छोड़ दिया है अब तो मैंने खुद को उसके जिम्मे 
चल रहा हूँ बेख़ौफ़, जबसे ये राह उसने सुझाई, 

डूबते हुए को कोई गैर क्यूँ दे बढ़ाकर अपना हाथ
 बुरे वक़्त में तो साथ छोड़ देती है अपनी भी परछाईं,


37 टिप्‍पणियां:

  1. मेल में मिली टिप्पणी-

    प्रिय इमरान,
    तुम बहुत ही उम्दा लिखते हो.कितनी भी तारीफ कि जाए कम है.
    पूर्णिमा.

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    1. आपका तहेदिल से शुक्रिया पूर्णिमा जी ।

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    2. इसमें कोई शक की गुंजाईश नही है...आप लिखते ही उम्दा हों |

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर लिखा आपने

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  3. ज़ख्मों को कौन भर सका है
    ज़ख्म होते ही हैं कुरेदने के लिए

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  4. बहुत बढ़िया गज़ल..... हर शेर बहुत शानदार

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  5. इमरान ...हर दिल के ज़ज्बात को लिखते हो .....बहुत खूब

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  6. या मेरे खुदा ! क्या खूब है तेरी भी खुदाई
    अगरचे इश्क है दुनिया में तो संग में जुदाई,,,,,,

    आपने सच कहा.बहुत उम्दा गजल,,,,,,

    RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

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  7. गहन अर्थ लिए ....बहुत खूबसूरत शायरी ...!!

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  8. छोड़ दिया है अब तो मैंने खुद को उसके जिम्मे
    चल रहा हूँ बेख़ौफ़, जबसे ये राह उसने सुझाई,
    kya baat kya baat kya baat ....ansari ji
    in panktiyo ne mann chhu liya..bahut khoob

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  9. आपके ब्लॉग पर आकर बढिया लगा आप भी पधारें पता है http://pankajkrsah.blogspot.com

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  10. आपकी यह पोस्ट पढ़कर जाने क्यूँ वो गीत याद आया...तड़प-2 इस दिल से आह निकलती रही मुझको साज दी प्यार की ऐसा क्या गुनाह किया जो लुट गए हम तेरी मूहोब्बत में...उम्मीद है इस एक गीत से ही आप समझ गए होंगे मेरे कहने का अर्थ गहन भाव अभिव्यक्ति...

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  11. बहुत ही सुंदर गजल ..........इमरान वाकई तुम्हारे ब्लॉग पर आकर जाना मुश्किल है बहुत उम्दा लिखते हो हमेशा खुश रहो :)

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  12. मुद्दतों बाद सीखा था मैंने फिर से मुस्कुराना
    पर तुम्हें तो मेरी ख़ुशी कभी रास ही न आई,

    Bahut..Bahut Umda

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  13. मुद्दतों बाद मैंने सीखा था फिर से मुस्कुराना
    मगर तुम्हें मेरी खुशी कभी भी रास न आई...

    बहुत खूब इमरान...
    सुन्दर गज़ल के लिए बधाई के हक़दार हो...!!

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  14. लाजवाब भाई इमरान। दर्द भी है, जुनून-ए-इश्क़ भी।

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  15. एक तरफ शिकायत है, जगत से ही नहीं परमात्मा से भी, फिर हार कर किया गया समर्पण भी है... बहुत खूब ! हर इंसान की यही कहानी है..

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  16. वाह ! जिसने भी ये राह सुझाई है उसको तो शुक्रिया कहना ही चाहिए..कि परछाहीं को भी मुकम्मल पोशाक मिल जाता है. उम्दा नज़्म..

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...