दिसंबर 13, 2012

नाज़ुक सा इश्क़




कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क़........

जो हम दोनों के दरमियाँ
आहिस्ते आहिस्ते पला था,
उसमें अपने मुस्तकबिल को
जवान होते देखा था मैंने,
रूह की पाकीज़गी से इश्क़
के बदन को सींचा था मैंने,

वो नाज़ुक परिंदे जैसा इश्क़
जिसकी रगों में मेरी वफ़ा का खून था
फुसला के ले गई एक रात वो उसे
झूठ की तलवार से उसका क़त्ल किया,
और उसकी बेवफाई के गिद्धों ने
इश्क़ के बदन को नोच-नोच के खाया,

इश्क़ की मासूम लाश को
कन्धों पर लाद कर लाया मैं
उसके ज़ख्मों के निशां
आज भी मेरे कन्धों पर हैं,
और इश्क़ की वो मासूम लाश
आज भी मेरे ज़ेहन में दफन है,

कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क.......

50 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी रचना रचने के इतना दर्द कैसे सहते हैं ....
    ख़ुदा आप पर हमेशा मेहरबान रहे ....

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    1. @विभा दी.......इश्क़ करोगे तो दर्द मिलेगा..........
      आमीन........आप भी खुश रहे।

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  2. प्यार का इतना दुखद अंत उफ्फ्फ्फ्फ़

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    1. शुक्रिया अंजू जी.......अक्सर ऐसा ही होता है ।

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  3. वो नाज़ुक परन्दे जैसा इश्क़.... वाली पंक्तियों से सहमत हूँ लेकिन फिर भी एक बात कहना चाहूंगी कि इश्क़ उस खुदा कि वो इबादत है जो बुरी तरह घायाल तो हो सकता है, मगर कभी मर नहीं सकता,मिट नहीं सकता। क्यूंकि सच्चे इश्क़ ज्यादोन के लिए तो
    प्यार आत्मा की परछाई है
    इश्क़ ईश्वर की इबादत
    और
    मूहोब्बत ज़िंदगी का मक़सद होता है ना...

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    1. शुक्रिया पल्लवी जी.......हाँ इश्क़ इबादत है जिसमे महबूब में खुदा दिखता है पर जब आपको ये पता चलता है की जिसे आप खुदा माने बैठे थे वो सिवाय एक बुत के कुछ भी नहीं..........तो दर्द ही दर्द है इसमें ।

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  4. first 2 lines of the last stanza are a killer ....

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  5. दर्द से लबालब रचना...
    दो बूंद ही काफी है
    दर्द छलकाने को
    एक मैं छलका दूँ
    एक तुम बरसा दो....

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  6. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (15-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया वंदना जी.......चर्चामंच में शामिल करने के लिए।

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  7. कच्चे रेशम के धागे जैसा
    वो नाज़ुक सा इश्क.......बहुत बढिया सृजन,,,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  8. इश्क कोई सा भी हो एक बार ग़मज़दा हो गए तो फिर तारीकियों से निकल पाना बड़ा मुश्किल होता है.

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  9. बहुत ही दर्दनाक अंत हुआ है इश्क का...
    संवेदनशील भाव लिए रचना..

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  10. इश्क मासूम है .....बुत में भी खुदा को पा लेता है ...../ इश्क सदीवी रहता है ...अंत नही होता उसका ....../// दर्द से लबरेज रचना

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  11. इश्क़ की मासूम लाश..कन्धों पे ज़ख्म के निशां...उफ्फ..रचना के भाव गहराई तक छू गए...क्या यही अंजाम होता है मासूम इश्क़ का?...बहुत मार्मिक प्रस्तुति..

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    1. हाँ अक्सर तो ऐसा ही होता है कैलाश जी .........शुक्रिया आपका ।

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  12. बेनामीदिसंबर 15, 2012

    उफ़ .............इतना दर्द इमरान !बहुत ही मार्मिक रचना पढकर ये हाल हुआ तो जिस पर बीती होगी उसका दर्द क्या होगा ............बखूबी आपने अपनी रचना में उस दर्द को जाहिर किया है बहुत उम्दा ..............................

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  13. अक्सर इश्क यूँ भी मरता है पर उसी इश्क से इश्क करके दिल कहाँ भरता है ?

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    1. सही कहा अमृता जी अक्सर फिर फिर फिसलता है ये दिल...........शुक्रिया।

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  14. प्यार के दर्द को बखुबी शब्द दिये है आपने.

    बहुत खुब.

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  15. बेनामीदिसंबर 15, 2012

    ह्रदय स्पर्शी भाव हैं, दर्द और प्रेम का गहरा सम्बन्ध रहा है !!!

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  16. ufffffffffff...bas kar pagle rulayega kaya.....aret rula hi diya..ati sunder

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  17. नाजुक से इश्क का दर्दभर अंत.... बेहद भावपूर्ण रचना !

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  18. इस रचना से रिसता दर्द ...दिल तक उतर गया ...बहुत खूब इमरान जी

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  19. इश्क की मौत..यह तो ऐसा ही हुआ जैसे कोई कहे प्रकाश सा अँधेरा..जो अमर है वही तो प्रेम है..बाकी सब दिल का ख्याल है..

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    1. शुक्रिया अनीता जी..........वाकई जज़्बात तो सारे ही ख्याल हैं हमारे :-)

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  20. बेनामीदिसंबर 19, 2012

    bahut shandar..
    dil ko chhu gyi..apki kalam.

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  21. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .

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  22. प्यार तो ऐसा है , कच्चे धागे का पक्का रिश्ता !!
    बस निभाना है भले एक तरफ़ा हो तो क्या
    जीने की वजह बनाना है
    खुश रहिये

    टीना !!

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...