अप्रैल 10, 2013

हकीक़त



तेरे देखते-देखते दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई 
एक तू है जो अभी तक ख्यालों में कहीं खो रहा है,  

देखना इन्हीं से होंगे एक रोज़ खुद तेरे पाँव घायल
आज जिन काँटों को तू दूसरों के लिए बो रहा है,

शायद यही है जिंदगी की हकीक़त ए ! मेरे खुदा
मौजों में है सफीना और माँझी गाफ़िल सो रहा है,

बख्श देगा शायद क़यामत के रोज़ ख़ुदा उसको 
करके तौबा अब अमाल से गुनाहों को धो रहा है, 

यहाँ कौन है जो किसी के बोझ को उठा ले 'इमरान'
हर शख्स अपना सलीब अपनी पीठ पर खुद ढो रहा है, 

43 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ कौन है जो किसी के बोझ को उठा ले
    हर शख़्स अपना सलीब खुद ढो रहा है...बहुत खूब !!

    जवाब देंहटाएं
  2. यहाँ कौन है जो किसी के बोझ को उठा ले 'इमरान'
    हर शख्स अपना सलीब अपनी पीठ पर खुद ढो रहा है,
    .... वाह बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  3. very good nice bahut badia makta behetreen hai
    wah wah wah imraan bhai khuda aap ko lambi umr de kamyaab kare.

    L.ansari

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ज़हेनसीब........ लईक भाई ब्लॉग पर आने का और इतनी खुबसूरत टिप्पणी देने का शुक्रिया ।

      हटाएं
  4. वाह प्रभावशाली रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूबसूरत ढंग से एक कड़वी हक़ीक़त बयाँ की है

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह बहुत प्रभावी उम्दा प्रस्तुति !!! इमरान जी ,

    recent post : भूल जाते है लोग,

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्दा लेखन इमरान भाई। सार्थक और सटीक।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी ग़ज़ल इमरान भाई. कांटे बोने वाले खुद घायल होते है ये सब जानते है पर फिर भी देखिये ... कितने कांटे बोने वाले हैं हमारे इर्द-गिर्द. दुःख होता है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा निहार भाई दुःख तो होता है पर जो जैसा करता है अल्लाह उसे एक दिन उसके किये का बदला ज़रूर देता है।

      हटाएं
  9. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...दिल को छू जाती...

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत खूब ....
    हर शख्स को अपने किये की सलीब खुद ही उठानी होती है....!
    ये अलग बात है वो उनके लिए दूसरों के कंधे खोजता रहता है...जहाँ अपने कर्मों का भर उस पर लाद सके...!!
    लेकिन ईश्वर ऐसा नहीं होने देता...यहाँ तक कि इंसान के रूप में जब भी वो धरती पे आया..खुद उसने भी अपने कर्मों को खुद भोगा है शरीर से...!
    सही कहा ...अपनी कर्मों की सलीब हमें खुद ही उठानी पड़ती है...वो लोग बकवास करते हैं जो ये कहते घूमते हैं कि उन्हें दर्द कोई और दे रहा है....!!

    जियो भाई...!!
    देखना इन्हीं से होंगे इक रोज खुद तेरे पाँव घायल...
    आज जिन काँटों को तू औरों के लिए बो रहा है...
    क्या खूब कहा है....!!
    बहुत खूब...!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. किन लफ़्ज़ों में शुक्रिया अदा करूँ दी.......हौसलाफजाई का तहेदिल से शुक्रिया ।

      हटाएं
  11. हर शख्स अपना सलीब अपनी पीठ पर खुद ढो रहा है

    जीवन का यथार्थ यही है..इस यात्रा में हमें वही मिलता है जो हम देते हैं..बहुत सुंदर गजल..

    जवाब देंहटाएं
  12. हर शख्स अपना सलीब अपनी पीठ पर खुद ढो रहा है

    ...कमाल का मिसरा है! सत्य है। बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  13. उम्दा..यदि वश चलता तो सभी दूसरे के कंधे पर ही अपना सलीब भी रख देते पर ..हम बेचारे...

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत खूब ... हर शेर में जीवन का सच छिपा है ...
    दूसरा ओर पांचवां शेर तो दिल को अंदर तक छूता है ... जमाने का सच लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  15. बेनामीअप्रैल 14, 2013

    wah wah bahut khoob imranji...
    harek jabz sachchai ki dastan hi to hein...

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत खूब हुज़ूर |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं
  17. जिंदगी की सच्चाई से रु ब रु करवाया है आपने इस रचना में ... बहुत प्रभावपूर्ण !

    जवाब देंहटाएं
  18. ये कर्म क्षेत्र की भूमि है
    कर्मो का हिसाब का बोझ तो खुद ही है उठाना
    खुश रहो और दुसरो को ख़ुश रखो
    यही संदेसा दे जाना

    बहुत अच्छा लिखते हो आप !!

    नई पोस्ट
    तेरे मेरे प्यार का अपना आशियाना !!

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...