फ़रवरी 12, 2013

हासिल



कभी खीझकर बाहर के शोर से कान बंद कर लेता हूँ
तो अपने ही भीतर का शोर मुझे पागल बनाने लगता है,

इस दौर में वही कामयाबी की मंजिल तक पहुँचता है 
जो हर कदम पर अपनी आत्मा को दबाने लगता है, 

अब उस बुज़ुर्ग से हर कोई बच के गुज़रता है, क्योंकि 
कहते है जिसे पाता है किस्से पुराने सुनाने लगता है,

पाक़ क़िताब में वादा है उसका, वो ज़रूर सुनता है सदा 
मगर जब कोई सच्चे दिल से उसे बुलाने लगता है 

नहीं मिलता है दोनों जहाँ में उसका हासिल 'इमरान'
करके अहसान किसी पर जो उसको जताने लगता है,


43 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर कविता भाई | बधाई

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  2. कभी-कभी लगता है वह सच में सुनता है !
    अच्छी ग़ज़ल !

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  3. पाक किता में वादा है उसका, वो ज़रूर सुनता है सदा
    मगर जब कोई सच्चे दिल से उसे बुलाने लगता है ....बहुत खूब और एकदम खरी बात दोस्त...:)

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  4. behtreen Gazal... Badhai ..
    meri nayi Rachna ,,...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html

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  5. बेहतरीन सुंदर गजल,,,,,बधाई इमरान जी,,,,

    RECENT POST... नवगीत,

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  6. नहीं मिलता है दोनों जहाँ में उसका हासिल 'इमरान'
    करके अहसान किसी पर जो उसको जताने लगता है,

    बहुत खूब ......!

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  7. इमरान, आपकी रचना नकार से शुरू होती है, पर पूरी होते होते सकारात्मकता से भर जाती है..जिंदगी की तल्खियाँ भी इसमें बखूबी बयान हुई हैं, दूसरे पैरा में श्रद्धा डगमगाती सी लगती है..पर जल्दी ही पैर सम्भल जाते हैं और विश्वास पुख्ता हो जाता है..बधाई !

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    1. इतनी सुन्दर विवेचना के साथ टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी ।

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  8. बेनामीफ़रवरी 12, 2013

    bahut bahut..unda imran ji har shewr lajawab hein,
    jra si kamyabi be har koi atma dabane lagta hein,,
    wah wah....

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  9. नहीं मिलता दोनों जहाँ में उसका हासिल, जो अहसान करके जताने लगता है ... बिलकुल सच्ची बात है... बहुत सुन्दर भाव

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  10. क्या बात...
    क्या बात....
    क्या बात.....!!

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  11. खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने इमरान भाई. कामयाबी वाला शेर गज़ब का है. हर जगह वही आलम है. पर क्या करें ज़िन्दगी है तो सब देखना है. कुछ अशआर कहे थे कुछ महीने पहले. आपकी नज़र-

    वही लोग हैं, वही हवा है, वही जमाना है
    कातिलों के शहर से होकर तुम्हे जाना है

    किसी के हाथ में खंजर प्यासे, कही फरसे
    जो उससे बच भी गए, नज़रें कातिलाना है

    कुचल देते हैं खिले फूल, बाग-ऐ-अमन में
    दुनिया का ये सिलसिला बहुत पुराना है

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया निहार भाई..........बेहतरीन शेर कहें हैं आपने।

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  12. जुनूने-शौक़ कभी कम न हो ..वो मिलता है , जरुर मिलता है . बहुत ही बढ़िया कहा है .

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  13. बहुत सुंदर कविता ...बधाई

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  14. वाह ..
    गहरी पंक्तियाँ असर करती हुई ...

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  15. वाह ...वाह.... इमरान, बहुत खूब...है शेर दूसरे पर भारी ...उम्दा लेखन ...मज़ा आ गया ....

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  16. बहुत सुंदर उद्गार ....
    शुभकामनायें इमरान जी ..

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  17. बहुत उम्दा शैर कहे हैं इमरान साहब .

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  18. बहुत खूब..नेकी कर दरिया में डाल।

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  19. Isse zindagi ke falsafe kahe ya kah de adhuri kasak...kuch to kahna padega...
    pr aap aise hi kahte jaaiye,achha lga

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  20. अरे वाह ...मैंने अब तक इसे पढ़ा नही ...क्यूँ??? सच ...हर मुक्तक लाजवाब ....संदेश भरा ...और हकीकत के करीब ...१.अध्यात्म २ दुनियादारी ३.अंतराल पीढ़ी का ..४.सच्चा इश्क ५.और कर्मफल ....सब कुछ एक एक मुक्तक में बयाँ कर दिया ....बहुत खूब इमरान ....रंगरेज और ये दोनों बहुत पसंद आई ....

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...