दिसंबर 13, 2012

नाज़ुक सा इश्क़




कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क़........

जो हम दोनों के दरमियाँ
आहिस्ते आहिस्ते पला था,
उसमें अपने मुस्तकबिल को
जवान होते देखा था मैंने,
रूह की पाकीज़गी से इश्क़
के बदन को सींचा था मैंने,

वो नाज़ुक परिंदे जैसा इश्क़
जिसकी रगों में मेरी वफ़ा का खून था
फुसला के ले गई एक रात वो उसे
झूठ की तलवार से उसका क़त्ल किया,
और उसकी बेवफाई के गिद्धों ने
इश्क़ के बदन को नोच-नोच के खाया,

इश्क़ की मासूम लाश को
कन्धों पर लाद कर लाया मैं
उसके ज़ख्मों के निशां
आज भी मेरे कन्धों पर हैं,
और इश्क़ की वो मासूम लाश
आज भी मेरे ज़ेहन में दफन है,

कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क.......

दिसंबर 01, 2012

शमां


प्रिय साथियों......इम्तिहानों का दौर है और पास भी होना है तो वक़्त की दरकार है की कुछ दिनों मेहनत का दामन थाम लिया जाए........इन्ही वजुहात  से कुछ दिनों तक आप सबसे दूर रहूँगा..........इंशाल्लाह 10 दिनों बाद मुलाक़ात होगी........आप सब अपना ख्याल रखें........खुश रहें.........खुदा हाफिज। 

पेश है ये ताज़ा ग़ज़ल....नोश फरमाएं और अपनी बेबाक राय ज़रूर ज़ाहिर करें.........


परवाने तो मिट कर पा गए इश्क़ कि मंज़िल मगर 
अपनी ही आग में खुद को जलाती रही शमां रात भर,

अश्क़ भरी आँखों से दीवारों को तकता रहा मैं 
और मेरे दामन को जलाती रही शमां रात भर,

हर बार चाहा कि उतार कर फेंक दूँ जिस्म से मगर 
लिबास तेरी यादों का जलाती रही शमां रात भर,

वो ख़त लिखे थे जो तुमने कभी मुझे प्यार में 
हर्फ़-ब-हर्फ़ उनका जलाती रही शमां रात भर,

गुज़री रात ने बदल के रख दिया मुझको 'इमरान'
मेरे माज़ी के गुनाहों को जलाती रही शमां रात भर,    


नवंबर 18, 2012

दीदार



मन्द बहती सबा में,
दरख़्त की छाँव में
सूरज की कुछ किरने 
उस पुराने पीपल के 
पत्तों से छन कर तुम्हारे 
चेहरे तक आ रही थी,

सर्दियों की उस अलसाई सी 
सुबह की धूप के साये में
तुम्हारे रुखसार पर वो 
अश्क़ बहते देखे थे मैंने
वही मेरे लिए तुम्हारा 
आखिरी दीदार था,

जानता हूँ कि गुज़री 
रात तुम बहुत रोईं थी 
जैसे दिल का तमाम दर्द
इन आसूँओं में बहा 
देना ही तुम्हारा मकसद था,

और शायद इन आसूँओं 
के साथ-साथ तुमने 
वो सारा प्यार भी बहा दिया 
जिसके गिर्द तुमने अपनी 
जिंदगी का हर सपना बुना था,

काश तुम्हारी तरह मैं भी रो पाता
तो मेरा मन भी हल्का हो जाता
अपने दिल पर जो पत्थर रखा मैंने
तमाम उम्र ढोने के लिए 
उसके बोझ तले कुचल 
सा गया है मेरा वजूद भी,

मैं इसलिए वहाँ से चला आया था 
जानता था की अगर तुमने मेरी 
आँखों की नमी देख ली होती, 
तो तुम कभी मेरा दामन न छोड़तीं,

खुद को स्याह रंग कर ही 
मैंने तुमको उजला किया 
ताकि जीती दुनिया तक 
कोई तुम्हारी तरफ एक
ऊँगली भी न उठा सके,

कहीं पाक किताबों के सफहों 
में पढ़ा था मैंने की यही मुहब्बत है,
जहाँ पाना ही सब कुछ नहीं होता
जहाँ महबूब की ख़ुशी 
अपनी ज़िन्दगी से बड़ी हो जाती है 

हाँ, सच यही मुहब्बत है..... यही। 


नवंबर 08, 2012

काफ़िला



मेरे देखते देखते ही गुज़र गया मेरा काफ़िला
मैं बिछड़ कर उससे फिर सफ़र में रह न सका,  

कहती थी दुनिया जिस दौलत को जहाँ का हासिल 
उसे पाने को मैं किसी गरीब का गला काट न सका, 

तोड़ते रहे लोग हमेशा मेरे दिल को आईने की तरह
मगर चाहकर भी किसी का बुरा मुझसे हो न सका, 

माना उसने दिया मुझे हज़ार बार राह में फरेब 
पर किसी और को भी तो महबूब मैं कह न सका,    

मिलती रही मुझे सज़ा यकीनन उम्र भर, क्योंकि 
किसी और पर होते ज़ुल्म को मैं सह न सका, 

उम्र-ए-गुरेज़ाँ से मेरी कभी न बन सकी 'इमरान'
इसने जो भी माँगा था मुझसे, वो मैं दे न सका,


अक्तूबर 30, 2012

सिंघा


प्रिय ब्लॉगर साथियों,

आज पहली बार कुछ अलग पेश है 'जज़्बात' पर, क्योंकि जज़्बात से भरा हुआ है इसलिए आप सबसे बाँट रहा हूँ । मेरी एक फेसबुक मित्र 'श्रीमती पूर्णिमा शर्मा' जी ने मुझे ये कहानी प्रेषित की थी, जो मुझे बहुत ज़्यादा पसंद आई मैंने उनसे अनुरोध किया कि मैं इसे अपने ब्लॉग पर अन्य मित्रों से शेयर करना चाहता हूँ उनकी सहमती से और उनके नाम के साथ पेश-ए-खिदमत है ये कहानी उनकी ही ज़ुबानी ।


सेव द टाइगर - सिंघा

आजकल यह नारा बुलंद है हर जगह, सोचती हूँ की हमने इस नेक काम में इतनी देर क्यों कर दी। हमें बहुत पहले ही समझ जाना चाहिए था कि हमें प्रकृति के नियमों से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, तो आज यह दुर्दशा नहीं होती हमारे जंगलों की ।

मैंने इस नारे के साथ एक नाम भी जोड़ दिया है जो आपको बड़ा बेतुका लग रहा होगा पर इस नाम के पीछे एक बड़ी दर्दनाक सच्ची घटना है, जो मेरी अपनी चचेरी बहन के नाम की है , जी हाँ, यह नाम मेरी चचेरी बहन का है मेरी आँखों में मेरी सिंघा का चेहरा बसा हुआ है । गौर-वर्ण ,लम्बी,छरहरी -सिंघा, जिसे मैं बहुत लाड़ में "सिंघु" कह के बुलाती हूँ क्योंकि सिंघा के रूप और नाम में घोर विरोध है कहाँ वह बिहारी की नायिका सी रूप-सुंदरी और कहाँ यह लट्ठमार नाम । कहीं कोई ताल-मेल नहीं । उसकी बड़ी-बड़ी गंभीर आँखें हमेशा कुछ बोलती सी लगती हैं।

मैंने एक बार हिम्मत करके चाची से अटपटे नाम का कारण पूछा तो वह थोड़ी देर के लिए अतीत में डूब गईं फिर बोली की किसी की याद में उन्होंने बेटी का यह नाम रखा था । सचमुच उसके नामकरण की कहानी बड़ी रोमांचकारी है आज उसे ही संक्षेप में सुनाने का लोभ मैं संवरण नहीं रख पा रही तो बात कुछ यूँ है की -

मेरे चाचा एक बार उदयपुर नरेश के साथ , किसी फॉरेस्ट आफिसर के संरक्षण में शिकार का कार्यक्रम बना बैठे । साथ थे राजाजी के कुछ अनुचर और  कुशल शिकारी दल। राजाजी खुद भी काफी तजुर्बेकार थे । साथ ली गईं कुछ  दुनाली बंदूकें, तमंचे, पिस्तौल और खाने-पीने का सामन और दूरबीन । पर तभी एक बखेड़ा खड़ा हो गया मेरी अति-आधुनिका चाची ने भी साथ में जाने की जिद ठान ली वैसे तो यूँ चाचा उन्हें कई बार छोटे-मोटे शिकार पर साथ ले गए थे ,पर इस बार शिकार करना था शेरनी का और परेशानी इस बात की भी थी चाची अभी गर्भवती थीं। पर बाल-हठ के बाद स्त्री-हठ का नंबर है । चाचा कि एक ना चली आखिरकार देर होते देख चाची की दवाइयाँ साथ लेकर सब निकल पड़े, सभी के मन में चाची के लिए चिंता और अनहोनी कि आशंका थी, क्योंकि चाची कि माँ ने सख्त आदेश दिया था, कि चाची को यथासंभव भारी कार्य व दुर्घटनाओं से बचाया जाए क्योंकि इन सब बातों का गर्भस्थ शिशु पर विपरीत असर पड़ता है कहावत है कि होता वही है जो मुक़द्दर में लिखा होता है ।

और जी सब पहुंचे रण-थम्बौर के निकट के जंगलों में, जहाँ शेरनी कि उपस्तिथि संभावित थी । मार्ग-दर्शन करने वाले ग्राम-प्रमुख ने मचान आदि का ठीक से प्रबंध करवाया, सब सुविधाएँ उपलब्ध करा कर वह गॉंव लौट गए। दो मचान बनाए गए ठीक आमने-सामने चार गज के अंतर पर । एक पर बैठे फॉरेस्ट आफिसर और राजाजी, और दूसरे पर शिकारी-दल के साथ चाचा व चाची, दोनों ही मचान शेरनी कि माँद से छः - सात गज कि दूरी पर थे । मांद से निकलकर यह पगडण्डी (जिसके दोनों ओर मचान थे ) पूर्वी नदी कि तरफ जाती थी, जहाँ शाम की छुट-पुटे में शेरनी पानी पीने जाती थी ।शेरनी को राह में ही घेरने के विचार से यह प्रबंध किया गया था, मचान के नीचे बाँधा गया था एक तंदरुस्त बकरा,  माँद से निकलने के बाद शेरनी के और कहीं जाने का कोई और मार्ग ना था।

तीन घंटे की उबा देनेवाली घोर प्रतीक्षा के बाद  माँद के करीब सूखे पत्ते खड़कने लगे तो सभी लोग दम साधे अपने शिकार का आगमन जानकर ट्रिगर पर ऊँगली गढ़ाए सतर्क हो गए, यह पहले ही तय था कि शेरनी के बकरे पर झपटते ही पहले राजा साहब फायर करेंगे और जैसे ही वह तड़प कर पीछे पलटेगी वैसे ही चाचा आदि के मचान से फायरिंग शुरू हो जाएगी ।शिकार को एक बार भी संभलने का मौका नहीं दिया जाएगा वरना सबकी खैर नहीं । दो-चार पल बीतने पर शेरनी कि छाया स्पष्ट होने लगी, निश्चित-रूप से उसने अपना शिकार देख लिया था। वह कुछ ठिठकी,  रोजाना के आवागमन मार्ग पर आज यकायक अपना भोज्य पदार्थ देख कर उसे संशय हुआ कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं ? कुछ देर सारी स्थिति का जायज़ा लिया कहीं कोई आहट ना पाकर वह पूरी तरह आश्वस्त हो गई और साढ़े हुए  क़दमों से बकरे कि तरफ बढ़ी। आकाश बादलों से ढका होने के कारण घटाटोप अन्धकार था जिसे कभी-कभार आकाशीय बिजली चमक कार बींध देती थी। वह बकरे से मात्र दो गज कि दूरी पर होगी कि तभी आकाश में बड़े जोर की बिजली कड़की,शायद पास ही कहीं गिरी भी तभी वह अप्रत्याशित घटना घटी, जो न ही कही देखी या पढ़ी गयी थी और ना ही सुनी थी।

बिजली की भीषण गर्जना से या और पता नहीं क्यों चाची डर गयी और अपना संतुलन खो बैठीं, और अगले ही पल वह मचान से नीचे बकरे और शेरनी के मध्य जा गिरीं । शेरनी से मात्र एक गज की दूरी पर, कितना कम फासला था जिन्दगी और मौत के बीच? बादलों का गडगडाना,चाची का गिरना, बिजली का चमकना सब कुछ जैसे पलों में ही घट गया । जब तक सब संभल पाते तब तक चाची मृत्यु-ग्रास बनी थर-थर काँप रही थीं और ऊपर मचानों पर बैठे सभी अपनी शक्ति को भूलकर एक स्वर में ईश्वर को पुकारने लगे । शेरनी भी भौचक्की हो कर चाची को निहार रही थी, शायद वह समझने की कोशिश कर रही थी की उसके शिकार शुरू से ही दो थे, या की एक अभी जुडा था?

चाची की कातर आँखें प्राणों की भीख माँगने हेतु पहले शेरनी के मुख पर जमी फिर मृत्यु-पूर्व पति के दर्शन का लोभ संवरण ना रख पाने के कारण मचान पर बैठे चाचा को केंद्र बना एकदम झपक गईं सबने सोचा शायद हार्ट-फेल हो गया दुःख व क्रोध से चाचा काँप उठे और आवेश में आ गोली दागने ही वाले थे की इशारे से राजा साब ने रोका कि इस तरह चाची कि अस्थियों से भी हाथ धो बैठेंगे। सबकी आँखें शेरनी पर आबद्ध थी, जो कि मंद स्वर में गुर्राती हुई चाची के एकदम समीप पहुँच कर उनका विधिवत निरिक्षण कर रही थी। पेट को कुछ ज्यादा देर सूँघने के बाद, उन्हें वैसे ही छोड़कर तीव्र-स्वर में मिमियाते बकरे पर झपटी और एक ही पल में उसका काम-तमाम कर दिया और अब वह बड़ी ही निश्चिंतता से उसे चीर-फाड़ कर कलेवा कर रही थी । चाचा के मचान कि तरफ उसकी पीठ थी और राजा साहब कि तरफ मुख गनीमत यही रही कि उसकी दृष्टि ऊपर पेड़ पर नहीं उठी वर्ना क्या कोई उस यमद्वार से वापिस लौटकर कौन यह रोमांचकारी घटना सुना पाता।

बकरे से निबट वह फिर चाची के पास कुछ पल को रुकी, शायद कुछ निर्णय ले रही थी फिर चल दी अपने गंतव्य कि ओर । वह मस्त चाल से, अपने आखेटकों से अनभिज्ञ चली जा रही थी कि तभी राजाजी ने गोली दाग दी इस अचानक के हमले से वह बुरी तरह तिलमिला गई और कर्णभेदी चीत्कार के साथ बिजली कि गति से पलटी पर तब तक दसियों गोलियाँ उसका कलेजा छलनी बना चुकी थीं। एक गोली उसके पेट में लगी और एक ह्रदय-विदारक चीख मारने के बाद शेरनी की ईह-लीला समाप्त हो गयी।

एक विजयी मुस्कान के साथ सब शेरनी के समीप पहुंचे तो देखा उसकी शून्य को निहारती आँखों में अजीब सी पीड़ा थी, मानो पीछे से किये गए हमले का जवाब माँग रही हो तभी शिकारी-दल शेरनी कि ओर आया और चाचा एवं राजा साहब थर्मस में से पानी ले कर उसके छीटें चाची के मुख-मंडल पर डाल उन्हें होश में लाने का यत्न करने लगे । सभी के मन में एक प्रश्न बार-बार कौंध रहा था, जिसका कोई हल नहीं निकल रहा था कि दो बार चाची के समीप आकर भी शेरनी ने उन्हें ज़िंदा क्यों छोड़ दिया ?

काफी प्रयत्न के बाद चाची को होश आया और उधर शिकारी-दल ने सबके आश्चर्य का अंत कर दिया यह बता कर कि "साहब शेरनी के पेट से दो अर्ध-विकसित बच्चे निकले हैं", यह सुनते ही सब जैसे आकाश से ज़मीन में आ गिरे । तो इसका मतलब शेरनी गर्भवती थी । क्या इसीलिए प्रसूतानुभवी शेरनी ने अपने शिकार कि जान बख्श दी थी, यह सोचकर कि शिकार भी उसी की अवस्था में है?

वह जंगली जानवर सूँघ कर ही कैसे जान गई कि शिकार भी मातृत्व के बोझ से परिपूर्ण है ? क्या ऐसी हालत में जबकि शिकार भी माँ बनने जा रही है, वह उसे कैसे खाए ? शायद यह उस जंगल कि रानी और माता के उसूलों के परे था बिना किसी शाब्दिक आदान-प्रदान के केवल मूक अनुनय-विनय से चाची को जीवन- दान देकर वह असभ्य नर-भक्षिनी माँ इस लोक से जा चुकी थी और हम सभ्य जाति के लोगों ने अपनी झूठी शान बढ़ाने के लिए उस जीवन-दात्री को उसके माँ होने के सुख से वंचित कर दिया था । और उसके बावजूद भी हम विवेकशील प्राणी कहलाते हैं । अब शेरनी की आँखों से गिरते  हुए आँसुओं का रहस्य उद्घाटित हुआ । 

उफ़ !!! उसके इस त्याग और जीवनदान का हमने ये बदला दिया उसे ? उसका बलिदान हमारी सभ्यता पर करारा तमाचा मार गया । चाहे इन्सान  हो या शेरनी पर माँ तो आखिर माँ ही होती है । हर मादा के लिए मातृत्व-सुख सबसे बड़ा सुख होता है...............और फिर उसी जीवनदात्री शेरनी के त्याग को आजीवन याद रखने  के लिए ही चाची ने पुत्री जन्म पर बिना पण्डित की सहायता के ही पुत्री का स्वयं ही नामकरण कर दिया "सिंघा"।

सिंघा,यानि की शेरनी । शेरनी यानि की त्यागशीला, चाची का आज भी यह अंध-विश्वास है कि वह अतृप्त माँ ही उनकी कोख से जन्मी है, तभी तो सिंघा कि आँखे भी उस शेरनी जैसी ही हैं, उतनी ही पनीली, कुछ कहती हुई सी मानो सबसे उस घोर अत्याचार का जवाब माँग रही हों ।

तो दोस्तों कैसी लगी आपको ये कहानी और उसमे छुपा ये सुन्दर सन्देश.....अपनी प्रतिक्रिया से अवगत ज़रूर करवाएं । आज ही ये कहानी प्रकाशित करने से पहले पता चला है की 'सिंघा' जी का कल देहावसान हो गया है......ईश्वर उस दिवंगत आत्मा को शांति दे......आमीन........तो ये पोस्ट उनको एक श्रद्धांजलि है पूर्णिमा जी और मेरी तरफ से ।  


अक्तूबर 22, 2012

मैं क्या हूँ ?


प्रिय ब्लॉगर साथियों, 

24.10.2012 को अपनी 28वीं सालगिरह के मौके पर इस खुबसूरत दुनिया में अपनी जिंदगी का एक और साल बिताने पर खुदा का शुक्रगुज़ार हूँ......पिछले एक साल में जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया......बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ पाया.....खैर ये क्रम तो चलता ही रहता है मायने ये रखता है की हमने क्या सीखा?.......इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी दोस्तों का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जो अपना कीमती वक़्त इस ब्लॉग को देते हैं और हौसलाफजाई करते है........दोस्तों मेरे हक में दुआ करें की खुदा मुझे नेक राह पर चलने की तौफिक दे.....आमीन। तो पेश-ए-खिदमत है इस मौके पर ये एक नज़्म.....कोई कमीबेशी हो तो ज़रूर बताएं -


मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं...... 

सिवाय ज़मीन पर पड़ी 
उस खाक के, 
जिसका ज़र्रा ज़र्रा 
आफ़ताब कि रौशनी 
का मोहताज है.......

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं..... 

सिवाय उस बहते 
दरिया के जो,
कभी किसी रोज़ 
सागर में मिलने 
को बेताब है........

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं..... 

सिवाय उस अलमस्त 
फकीर के जिसके 
पाँवों में काँटे हैं 
और लबो पर खुदा से 
मिलन कि आस है.....

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं...... 

सिवाय आसमां के उस 
तारे के जो खुद भी चमकने 
को महताब कि रोशनी 
का मोहताज है......

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं.....

सिवाय उस हिना के
जो खुद को मिटा के 
बनती महबूब के हाथों 
     की ज़ीनत-ओ-आब है....

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं...... 

सिवाय उस गुलाम के
जिसका सर झुकता है
उसके आगे जो,
       सारे जहाँ का सरताज है...... 

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं...... 
  

अक्तूबर 08, 2012

परछाईं



तिनका तिनका जोड़ कर बनाया था जिसे 
इक पल में तुमने उस आशियाँ को आग लगाई,

दिया हर क़दम पर मुझे रुसवाइयों का तोहफा 
गुनाह था मेरा इतना कि तुमसे की आशनाई,

मुद्दतों बाद सीखा था मैंने फिर से मुस्कुराना 
पर तुम्हें तो मेरी ख़ुशी कभी रास ही न आई,

या मेरे खुदा ! क्या खूब है तेरी भी खुदाई
अगरचे इश्क है दुनिया में तो संग में जुदाई,  

बाँधा करते थे हम तुमसे उल्फत की उम्मीदें 
  पर कहाँ तुमने कभी रस्म-ए-मुहब्बत निभाई, 

भर सके जो मेरे इन गहरे ज़ख्मों को 
ढूंढ रहा हूँ मैं हर जगह वो मसीहाई,

छोड़ दिया है अब तो मैंने खुद को उसके जिम्मे 
चल रहा हूँ बेख़ौफ़, जबसे ये राह उसने सुझाई, 

डूबते हुए को कोई गैर क्यूँ दे बढ़ाकर अपना हाथ
 बुरे वक़्त में तो साथ छोड़ देती है अपनी भी परछाईं,


सितंबर 27, 2012

जोगी



जबसे देखी है झलक मैंने तेरी
बन गया हूँ तब से मैं तेरा जोगी,

तेरे रहम का हूँ तलबगार कबसे
बख्श देगा तो रहमत तेरी होगी,

पा लूँगा जब खुद में तेरा वजूद
हाथों में तब क़ायनात सारी होगी  

लगा है जबसे ये इश्क़ वाला रोग
बीमार हूँ तेरा, दुनिया कहे रोगी,

कैसे झेलूँगा तेरे जलवों की ताब
जब तुझसे मुलाक़ात मेरी होगी,

झुका दी है अब तेरे क़दमों में ख़ुदी 
कभी तो बारिश तेरे नूर की होगी,  

नहीं भटकोगे तुम कभी रास्ता
    साथ तुम्हारे उसकी रहनुमाई होगी,  

सितंबर 19, 2012

परवाज़



खुले हों जो पँख परिंदे के तो परवाज़ कहाँ रूकती है 
पर हम खुद को पिंजरों में गिरफ्तार किये बैठे हैं,

वो राह तो सीधी ही मंजिल तक चली जाती है 
पर हम अपने ही बुने जालों में फँसे बैठे हैं,

चढ़ी थी जहाँ हमारी मुहब्बत की दास्ताँ परवान 
उन्ही राहों को आज भी राहगुज़र बनाये बैठे हैं,

जब तक बुझ नहीं जाती प्यास हमारी रूह की 
तब तक हम अलख जगाये तेरे दरबार में बैठे हैं,

बख्श देगा, ए ! मेरे मौला मेरे गुनाहों को तू 
इसी उम्मीद पे तेरे दर पे सर झुकाए बैठे हैं,

देगा एक दिन तू अपने जलवों का नज़ारा मुझे 
बस इसी एक दुआ को हम हाथ उठाये बैठे हैं,

अगस्त 31, 2012

मेरी टॉप 10 लिस्ट - 3



प्रिय ब्लॉगर साथियों,

आज एक बार फिर आप सब से रूबरू हो रहा हूँइस महीने मेरे ब्लॉग की तीसरी वर्षगाँठ है| इस मौके पर पिछली दो बार की तरह इस बार भी मेरी टॉप 10 लिस्ट हाज़िर हैं |पुराने ब्लॉगर साथी इससे वाकिफ होंगे जो कदरन नए हैं उनके लिए पिछली लिस्ट के लिंक दे रहा हूँ:-



उन सब लोगों का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने अपना कीमती वक़्त इस ब्लॉग को दिया और हौसला अफजाई कीपिछले एक साल में कुछ पुराने ब्लॉगर ने लिखना लगभग छोड़ ही दिया जिनमे पारुल जी, क्षितिजा जी, वर्ज्य नारी स्वर, विशाल जी कई लोगों को काफी याद करता हूँ । कुछ नए ब्लॉग मिले जिनको  पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा.......एक अनुभव और हुआ की जब भी ये लिस्ट आती है कुछ लोगों का ब्लॉग पर आना बहुत कम हो जाता है मैं सबसे ये गुज़ारिश करता हूँ की ये सिर्फ मेरा सलाम है उन लोगों को जो बेहतरीन ब्लॉग लिख रहे हैं अन्यथा मैं कोई नहीं होता किसी का आंकलन करने वाला.......कृपया इसको बिलकुल भी अन्यथा लें   

हर बार की तरह मैंने यहाँ किसी ब्लॉग को उसके रचनाकार के तजुर्बे, उम्र, उसके फॉलोवर या उसकी पोस्ट पर टिप्पणीयों या किसी अन्य वजह से नहीं,.......बल्कि सिर्फ और सिर्फ उस ब्लॉग की रचनाओ को आधार बनाया है। दूसरी बात ये लिस्ट सिर्फ मेरी व्यक्तिगत रूचि पर आधारित है, जो पिछले एक साल में मैंने पढ़े हैं और जो मुझे पसंद आये .........कृपया इसे बिलकुल भी अन्यथा लें.......हो सकता है किसी को मुझसे इत्तेफाक हो|


तो शुरू करते हैं नंबर 10  से -

ब्लॉग का नाम       -  मेरे हिस्से की धूप
लिंक                 -  http://merehissekidhoop-saras.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  सरस दरबारी

सरस जी का ब्लॉग मेरे लिए ज्यादा पुराना नहीं है अभी कुछ दिनों पहले ही उनके ब्लॉग को पढ़ने का सौभाग्य मिला .......उनके लिखने का अलग अंदाज़, उनकी शैली उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करती है |

नम्बर 9  पर हैं -

ब्लॉग का नाम       - विचार
लिंक                  -  http://www.testmanojiofs.com
ब्लॉग लेखक         -  मनोज कुमार

मनोज जी का ब्लॉग विचारों का संग्रह है.....मुझे इनके ब्लॉग पर सूफियाना सिलसिला बहुत पसंद आया।उनके इस बेहतरीन काम के लिए उनको हैट्स ऑफ  


नम्बर 8  पर हैं -

ब्लॉग का नाम        -  anubuthi
लिंक                   -  http://kasliwalpoonam.blogspot.in
ब्लॉग लेखक          -  पूनम जैन कासलीवाल

पूनम जी का ये ब्लॉग शानदार है......जीवन की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी घटनाओ को सुन्दरता से कविता में पिरोती हैं कई बार तो स्तब्ध कर देने वाली पोस्ट मिलती है उनके ब्लॉग पर।


नम्बर  पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  बस यूँ ही
लिंक                  -  http://punamsinhajgd.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  पूनम

पूनम दी के ब्लॉग गजलों, कविताओं का संग्रह है.....कभी प्रेम की ऊंचाई तो कभी उसकी गहराई को छूती उनकी रचनायें बेजोड़ हैं|


नम्बर 6  पर हैं -

ब्लॉग का नाम        -  दिल की कलम से
लिंक                   -  http://dilkikalam-dileep.blogspot.in
ब्लॉग लेखक          -  दिलीप

दिलीप जी की गजलों का मैं क़ायल हूँ....जिंदगी की छोटी-छोटी बातो को पिरोकर कैसे वो एक शानदार ग़ज़ल का रूप देते है, उनकी ग़ज़लें मन को मोह लेने वाली हैं |

नम्बर 5  पर हैं

ब्लॉग का नाम       -  परवाज़....शब्दों के पंख
लिंक                  -  http://meri-parwaz.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  डॉ॰ मोनिका शर्मा

एक सुलझी शख्सियत हैं मोनिका जी......उनके ब्लॉग पर समाज परिवार से जुडी छोटी बड़ी  समस्याओं को लेकर लिखे उनके सार्थक लेख और उनका यथासंभव हल देने की उनकी कोशिश के लिए मेरा सलाम उनको|

नम्बर 4 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  सदा
लिंक                  -  http://sadalikhna.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  सदा

सदा जी का ब्लॉग अभी पिछले साल से ही पढ़ना शुरू किया है उनकी पोस्ट बहुत गहन होती हैं कभी प्रेम कभी रिश्ते तो कभी स्वयं को समेटे

नम्बर 3 पर हैं -


ब्लॉग का नाम       -  मेरी भावनायें...
लिंक                  - http://lifeteacheseverything.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  रश्मि प्रभा...

खुद हैरान हूँ कि तीन साल हो गए ब्लॉगजगत में और मैं रश्मि जी के ब्लॉग से अछूता रह गया था पर कुछ दिनों पहले ही उनके ब्लॉग पर जाने का सौभाग्य मिला.....उनकी लेखनी कमाल कि है | गहरी मनिवैज्ञानिक पोस्ट होती हैं उनकी.....कई बार कुछ कहने के लिए शब्द ही नहीं मिलते उनकी पोस्ट पर....उनके द्वारा ब्लॉगजगत को दिए योगदानों कि कमी नहीं......हैट्स ऑफ उनको।


नम्बर 2 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  डायरी के पन्नों से
लिंक                  - http://amrita-anita.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  अनीता निहलानी

वैसे तो अनीता जी का एक ब्लॉग और भी बहुत सुन्दर है 'मन पाए विश्राम जहाँ' पर इस बार मैंने उनके ब्लॉग 'डायरी के पन्नों से' को लिया है.....गहन अध्यात्मिक अनुभव जो वो इस ब्लॉग पर बाँटती हैं वो बहुत ज्ञानमय और अमूल्य है.....उनसे जो कुछ भी सीखा है उसके लिए दिल से उनका शुक्रगुज़ार हूँ।

और नम्बर 1 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  Amrita Tanmay 
लिंक                  -  http://amritatanmay.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  अमृता तन्मय

हालाँकि पिछले साल अमृता जी ब्लॉगजगत में बहुत कम सक्रीय रही हैं पर इसके बावजूद उनके ब्लॉग की पोस्टों की गुणवत्ता में कोई फर्क नहीं आया......हिंदी के कुछ शब्द तो ऐसे होते हैं जो मैंने उनके ही ब्लॉग पर पढ़े हैं सिर्फ......कमाल के हिंदी ज्ञान के साथ साथ उनकी बेजोड़ कवितायेँ जो नूतन विषयों पर होती हैं.......हिंदी में इतना सुन्दर लिखने वाली कवियत्री अन्यत्र कहीं नहीं है। आज अमृता जी ब्लॉगजगत में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं......हैट्स ऑफ अमृता जी को इतने सुन्दर लेखन के लिए। 
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इनके आलावा और भी बहुत अच्छे ब्लॉग रह गए है, जिन्हें सिर्फ टॉप 10 होने के कारण यहाँ शामिल करना संभव नहीं है | उन सब से माफ़ी चाहूँगा।

और अंत में एक बार फिर कहना चाहूँगा की ये लिस्ट सिर्फ मेरी व्यक्तिगत रूचि पर आधारित है, कृपया आप सबसे अनुरोध है इसे अन्यथा लें........ये सिर्फ मेरी एक कोशिश है जिसका पास-फेल आपने ही निकालना है आपकी प्रतिक्रिया अच्छी या बुरी जैसी भी हो, ज़रूर दें| आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में ।

अगस्त 04, 2012

कुदरत के नज़ारे

प्रिय ब्लॉगर साथियों,

आज आपके साथ अपने द्वारा लिए गए कुछ प्राकृतिक फोटो बाँट रहा हूँ जिसमे कुछ प्राकृतिक दृश्य हैं, कुछ फूल है, कुछ परिंदे और कुछ जानवर.......सभी फूलों के नाम मुझे पता नहीं हैं जो मुझे अच्छा लगा वो मैंने ले लिया....अगर आप में से किसी को पता हों तो ज़रूर बताये.........फोटो कैसे लगे ज़रूर बताएं और एक बात और क्या आगे भी इस ब्लॉग पर फोटो डालने चाहिए या नहीं  :-)

प्राकृतिक दृश्य 


दूर तक फैला रेगिस्तान, जैसलमेर 

रेगिस्तान में सूर्यास्त, जैसलमेर 

गंगा नदी सावन के मौसम में , हरिद्वार

ऊँचे पहाड़ से उदयपुर का दृश्य 

ऊँचे पहाड़ से दिखती छोटी सी सड़क, उदयपुर 

झील का घुमाव, उदयपुर 


झील में सूर्यास्त, उदयपुर 

फूलों के रंग 


मन को मोहते रंग ????????

संतरी रंग का गुलाब, रानी पद्मनी का महल, चित्तौडगढ़

सफ़ेद रंग का गुलाब, रानी पद्मनी का महल, चित्तौडगढ़

लाल रंग का गुलाब, रानी पद्मनी का महल, चित्तौडगढ़

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शायद कमल ?????

शायद कमल ?????

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परिंदे और जानवर 

ख़ुशी में झूमता रंगों को बिखेरता मोर, उदयपुर 

 पेड़ की छाँव में आराम करते लंगूर, मन्दौर (जोधपुर)

 सुकून से घास चरता हिरन, सिकंदरा (आगरा)

 माँ का जज्बा हर रूप में एक जैसा बारिश से बच्चे को बचाती माँ, हरिद्वार  

 कुदरत के अनोखे रंगों को समेटे तितली, उदयपुर 

 लुप्त हो चुकी प्रजाति 'गिद्ध' - अजायबघर उदयपुर 

 आराम करते हुए हिरन - अजायबघर, लखनऊ 

 सफ़ेद स्वच्छ सरस, दिल्ली 

पानी में मस्ती करती बत्तखें, दिल्ली 

मन मर्ज़ी करती मैना, दिल्ली 

और आखिर में फोटोग्राफर का भी एक :-)) 

जुलाई 23, 2012

मुर्दों का वतन


ये सोये हुए लोगों का देश है ये नींद आज की नहीं सदियों गहरी हैं ये बुद्ध जैसे लोगों के जगाये नहीं जागे.....ज़मीन पर रेंगने की आदत पड़ गयी है लोगों की ......रीड़ तो जैसे खत्म हो चुकी है.....यहाँ की जनगणना में मुर्दों की ही गिनती हो रही है बरसों से.....कहीं भी कुछ भी होता रहे तमाशा देखने में हम भारतीय सबसे आगे हैं तमाशा ख़त्म होते ही उस पर टीका-टिप्पणी करते हुए अपनी अपनी राह लगते हैं कभी सदियों में कोई जागने की कोशिश करता है तो वो दूसरे मुर्दों के द्वारा चुप कर या करा दिया जाता है......ये क्रम न जाने कब से चल रहा है और कब तक चलता रहेगा......बस हमे इंतज़ार है की कोई आएगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा हम क्यों चिंता करें ? हमे तो सोने दो अपनी अपनी कब्रों में......क्योंकि हमारे बुज़ुर्ग कह गए हैं जगत माया है सब प्रभु की लीला है तो फिर क्या कर्म करना......जो हो रहा है उसे होने दें.....और खड़े देखते रहें और शुक्र मनाते रहे की हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ.....जब तक हम खुद अपने पैरों पर खड़े नहीं होते लोगों के सामने मदद की भीख मांगना बंद नहीं करते.....कुछ नहीं बदलने वाला यहाँ।

एक फिल्म 'क्रांतिवीर' का एक दृश्य याद आता है जब नायक नाना पाटेकर से एक बच्चा अपनी माँ को बचाने की गुहार लगाता है तब वो कहता है की कब तक ऐसे ही लोगों की मदद माँगता फिरेगा आज कोई बचा लेगा फिर कौन आएगा हर बार बचाने ? ......तब बच्चा खुद एक पत्थर उठा कर आततायी को मरता है उस बच्चे की हिम्मत से उसकी माँ भी लाठी उठा लेती है और हालात का मुकाबला करती है ।

सिर्फ और सिर्फ यही एक ज़रिया है की हमे हर अन्याय के खिलाफ खुद उठाना होगा जब एक हिम्मत करेगा तो और भी जुड़ेंगे.....पर नहीं हमे तो जन्म से बताया गया है की यदा यदा ही धर्मस्य......तो हम तो इंतज़ार कर रहे है की कब भगवान स्वयं आयें और हमे हर अन्याय से बचा लें ।

अंत में बस यही जागो जागो और अपने मसीहा आप बनो -

" कुछ न कहने से भी छीन जाता है एजाज़-ए-सुखन
  ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है ,

" बना लेता है मौज -ए-दिल से एक चमन अपना 
  वो पाबन्द-ए -कफस जो फितरतन आज़ाद होता है,
   यहाँ तो मर्ज़ी का अम्ल है खुद गिरफ़्तारी 
   जहाँ बाजू सिमटते है वही सय्याद होता है"